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उत्थायोत्थाय सततं स्वस्थेनारोग्यमिच्छिता। धीमता यदनुष्ठेयं तत्सर्वं सम्प्रवक्ष्यते।। (सु. चि. 23।3)
स्वास्थ्य परिरक्षण (देखभाल) हेतु स्वस्थ पुरुष को नित्य सो कर उठने के बाद जो कर्म करने चाहिए उन्हें ही स्वस्थवृत्त कहते हैं। इनके पालन से सभी रोगों को दूर रखते हुए मनुष्य द्वारा सप्रयोजन ( सही उद्देश्य के साथ) आरोग्य पूर्वक जीवन यापन किया जा सकता है।
आयुर्वेद शास्त्र में स्वास्थ्य के परिरक्षण हेतु विस्तृत दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा त्रतुचर्या का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार स्वस्थवृत्त के पालन से शरीर स्वस्थ रहता है तथा पालन न करने से ही विभिन्न रोग उत्पन्न होते हैं।
आयुर्वेद के प्रमुख उद्देश्य हैं:-
१. स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा करना
२. रोगी के रोगों को दूर करना
संसार में सभी प्राणियों के समान मनुष्य भी शरीर के भीतर व बाहर की की परिस्थितियों से प्रभावित होता रहता है। यदि भीतर और बाहर की परिस्थितियां सदा समान रहती, तो स्वास्थ्य के नियम भी अति सरल होते। परंतु इस संसार में भीतर व बाहर की सभी परिस्थितियां सदा ही परिवर्तनशील होती हैं। अतः हमें स्वस्थवृत्त का नियमित रूप से पालन करके अपने स्वास्थ्य की रक्षा अवश्य करनी चाहिए।
शरीर के भीतर की परिस्थितियां हमारी जैव भौतिक एवं रासायनिक क्रियाओं से परिवर्तित होती हैं।
हमारे शरीर के बाहर की परिस्थितियां वातावरण के परिवर्तन, भौगोलिक परिवर्तन, तापमान परिवर्तन तथा सामाजिक परिवर्तन जैसी घटनाओं से प्रभावित होती हैं।
अतः पूर्ण रूप से स्वस्थ रहने के लिए हमें भीतर एवं बाहर की परिस्थितियों के अनुसार प्रतिकूल आहार-विहार, आचार विचार का समायोजन (एडजस्टमेंट) करना चाहिए।
उदाहरण के लिये:
मनुष्य जीवन के चार पुरुषार्थ (उद्देश्य) में से तीन पुरुषार्थ– धर्म, अर्थ, काम को प्राप्त करने में आयुर्वेद श्रेष्ठ मार्ग होता है। इन पुरुषार्थों का साधन सहायक आरोग्य है तथा इन पुरुषार्थों में सबसे बड़ी बाधा है- रोग।
आयुर्वेद में बताए गए निर्देश- रसायन, औषधि, पंचकर्म आदि रोगी के रोगों को दूर करने में सक्षम है ।
आरोग्य वर्धन तथा स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा करने हेतु स्वस्थवृत्त नियम पालन सर्वश्रेष्ठ है।
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Nice